शिक्षा-दीक्षा और संघ से संपर्क:
भारतीय जनता पार्टी के प्रेरणास्रोत पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के नगला चंद्रभान गांव में 25 सितम्बर 1916 को हुआ था। अत्यंत सामान्य किंतु धार्मिक प्रवृत्ति के परिवार में जन्मे दीनदयाल जी बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि और प्रतिभाशाली विद्यार्थी रहे। मैट्रिक परीक्षा में सर्वोत्तम स्थान, इंटरमीडिएट और बीए प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की जबकि वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आकर लगातार संघ कार्य मे अपना समय व ऊर्जा लगाते थे। वर्ष 1942 में उत्तर प्रदेश के लखीमपुर जिले में संघ प्रचारक के रूप में कार्य प्रारंभ किया। 1945 में सह प्रांत प्रचारक की जिम्मेदारी निभाई। बाद में राष्ट्रधर्म और पांचजन्य जैसे पत्र पत्रिकाओं के द्वारा राष्ट्रवादी पत्रकारिता से मार्गदर्शन किया। दीनदयाल जी एक
युगान्तरकारी लेखक के नाते भी जाने जाते हैं।
जनसंघ के संगठनात्मक व राजनीतिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान:
11 अक्टूबर 1951 में जनसंघ की स्थापना के बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1952 में दीनदयाल जी को राष्ट्रीय महामंत्री नियुक्त किया। उन्होंने अत्यंत कम समय में संगठन की साधना करते हुए जनसंघ को विस्तार दिया। वैचारिक मार्गदर्शन दिया। कार्य पद्धति विकसित की। यही कारण रहा कि डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कहा था कि “ यदि मुझे दो और दीनदयाल मिल जाएं तो मैं संपूर्ण भारत का राजनीतिक नक्शा बदल दूं।” बहुत कम समय ही दोनों नेताओं ने साथ काम किया। जम्मू कश्मीर आंदोलन में डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बलिदान हो गया और पूरी जिम्मेवारी दीनदयाल जी के कंधों पर आ गई। उन्होंने तब से लेकर लगातार 15 साल जनसंघ को अखिल भारतीय स्तर पर मजबूत संगठन के साथ स्थापित किया।
दीनदयाल जी स्वतंत्र भारत में भारत केंद्रित राजनीति स्थापित करने वाले राजनीतिक महर्षि के तौर पर जाने जाते हैं। दीनदयाल जी की मान्यता रही कि देशज राजनीतिक चिंतन के आधार पर भारत आगे बढ़ सकता है। इस देश की विशेषता और दर्शन के आधार पर यहां की शासन व्यवस्था काम करे। इस महान उद्देश्य को लेकर दीनदयाल जी ने संगठन तंत्र की शक्ति को स्थापित किया। बहुत कम समय में ही 1962 में जनसंघ ने लोकसभा में 14, विधानसभा में 116 सीटें जीती। 1967 में लोकसभा में 35 और विधानसभा में 268 सीटें जनसंघ प्राप्त की थी। देश में कांग्रेस के बाद जनसंघ सबसे बड़ी राजनीतिक शक्ति बनी।
एकात्म मानवदर्शन के जनक:
दुनिया दीनदयाल जी को एक शाश्वत और सनातन राजनीतिक दर्शन के जनक के रूप में जानती है। वह राजनीतिक दर्शन “एकात्म मानव दर्शन” के नाम से जाना जाता है। मध्य प्रदेश की धरती गौरवान्वित है कि 1964 में ग्वालियर संभाग के जनसंघ के प्रशिक्षण वर्ग में दीनदयाल जी ने पहली बार एकात्म मानव दर्शन को प्रस्तुत किया था। जिसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरकार्यवाह माननीय बालासाहेब देवरस उपस्थित थे। बाद में यही “एकात्म मानव दर्शन” विजयवाड़ा के अधिवेशन में पार्टी का अधिकृत दस्तावेज बना। दीनदयालजी 1967 में भारतीय जनसंघ के कालीकट अधिवेशन में राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्वाचित
हुए।
दीनदयाल जी की रहस्यमय परिस्थितियों में हत्या:
देश को वैकल्पिक राजनीति नहीं बल्कि देशज संकल्पित राजनीति देने वाले विपक्ष की धुरी बन चुके लोकप्रिय राजनेता दीनदयाल जी की हत्या कर दी गई।
10 फरवरी 1968 की शाम को लखनऊ से पटना प्रवास के लिए सियालदाह एक्सप्रेस से प्रस्थान किया। परन्तु यह यात्रा महायात्री की आखरी यात्रा सिद्ध हुई।
11 फरवरी 1968 को मुगलसराय स्टेशन पर रेल यार्ड में उनकी मृत देह पाई गई।
दीनदयाल जी सर्वकालीन प्रासंगिक:
दीनदयाल जी के विचार बदलते परिवेश में और अधिक प्रासंगिक हुए हैं। दीनदयाल जी ने जिस प्रकार मनुष्य को शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा का समुच्चय बताया। ठीक उसी प्रकार उन्होंने कहा की राष्ट्र भी इसी भांति अपना शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा के रूप में बना है। इन चारों का विकास समग्र रूप से जरूरी है। जब सबका विकास होगा तभी व्यक्ति या देश आगे बढ़ सकता है। अपने राजनीतिक चिंतन में अंत्योदय के माध्यम से समाज में जो सबसे पीछे है, जो सबसे नीचे है उसके कल्याण और सेवाभावी दृष्टिकोण का उनका अपना आग्रह रहा है।
आत्मनिर्भर भारत निर्माण हेतु
दीनदयाल जी का मार्ग ही एकमेव सिद्ध मार्ग
भारत का लोकतंत्र अधिक परिपक्व हो रहा है लोकतंत्र की चुनौतियां हो या समाज के प्रश्न इनका समाधान दीनदयाल जी के चिंतन और दर्शन में ही छिपा है। जैसे-जैसे हम दीनदयाल जी के विचारों के समीप जाते जाएंगे हम इस राष्ट्र के मूल चिंतन के समीप होते जाएंगे। यही चिंतन भारतीय जनता पार्टी की सरकारों में समाधान कारक सिद्ध हुआ है। दुनिया में आज भारत इसी चिंतन के आधार पर मजबूती के साथ में खड़ा है, तेजी से हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है। दीनदयाल जी का मार्ग ही आत्मनिर्भर भारत बनने का एकमेव सिद्ध मार्ग है।
भाजपा कार्यकर्ता के नाते हमारा दायित्व:
भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता के नाते हम सबकी यह जिम्मेवारी है कि हम अपने राजनीतिक व्यवहार में दीनदयाल जी को अपनाएं उनके विचार को जिएं। आगे बढ़ाएं। पार्टी की सभी गतिविधियों का केंद्र दीनदयाल जी के विचार, व्यक्तित्व और कृतित्व बनें। यह पार्टी का उद्देश्य ही नहीं बल्कि समाज की आवश्यकता भी है।
दीनदयाल जी ने कहा था कि “ हमारी राष्ट्रीयता का आधार भारत माता हैं केवल भारत नहीं। माता शब्द हटा दीजिए तो भारत केवल जमीन का टुकड़ा मात्र रह जाएगा।” यह भाव लगातार संगठन तंत्र की शक्ति के साथ ही सिद्ध किया है। हमें संगठन तंत्र की शक्ति को लगातार विस्तार देना है। संगठन तंत्र की शक्ति ही वैभव का चित्र सजाती है। हमारा ध्येय भारत माता को परम वैभव की ओर ले जाना ही है।
वंदे मातरम! भारत माता की जय!
